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बुधवार, 28 अक्तूबर 2009

विश्वसनीयता किसने खोई - इ वि ऍम मशीन ने , जनता ने या फिर राजनेताओं ने !

हाल ही मैं तीन राज्यों के चुनाव परिणाम आने पर राजनीतिक पार्टियों द्वारा विश्वसनीयता पर प्रश्न चिह्न खड़ा किया गया । जन्हा कोई इ वी एम् मशीन की विश्वसनीयता पर प्रश्न चिह्न खड़ा कर रहा है तो कोई जनता की विश्वसनीयता पर तो , वन्ही जनता राजनेताओं की विश्वसनीयता पर पहले से ही प्रश्नचिंह खड़ा कर रही है । अब किस बात पर कितनी सच्चाई है यह गौर करने वाली बात है ।
जन्हा इ वी एम् मशीन की विश्वसनीयता पर बात करें तो पहले भी इस बात पर सवाल खड़े किया जा चुके हैं और इ वी एम् मशीन पूरी तरह छेड़ छाड रहित और त्रुटी रहित है ऐसा कोई प्रमाण अभी तक सार्वजानिक अवं प्रमाणिक रूप से नही दिया गया है जिससे यह साबित हो सके की इ वी एम् मशीन को पूर्णतः त्रुटिरहित और अविश्वसनीय न माना जा सके । जब इस तरह की कोई वस्तु जो देश के निष्पक्ष जनमत संग्रह का माध्यम हो और लोकतंत्र क्रियान्वयन मैं महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हो की विश्वसनीयता पर उंगली उठने लगे तो जरूरी है की ऐसी बातों की अनसुनी करने की बजाय उठने वाली आशंकाओं एवं भ्रमों को विराम देने एवं अविश्वसनीयता को निराधार साबित करने हेतु प्रयास तो अवश्य ही किए जाने चाहिए ।
इस चुनाव मैं नई बात यह सामने आई की पक्ष मैं आशा अनुरूप और वांछित परिणाम न मिलने पर राजनीतिक पार्टियों और राजनेताओं द्वारा जनता को अविश्वसनीय कहा गया । जबकि जनता के निर्णय को सही और जायज मानते हुए उसे सिरोधार्य करने की परम्परा देश के लोकतंत्र मैं रही है । एवं भविष्य मैं अपनी गतिविधियाँ और क्रियाकलापों पर आत्म अवलोकन करने और भूल सुधार करने की बात होती रही है । किंतु अपनी असफलताओं का दोष जनता के सर मढ़ने का यह पहला बाकया है ।
इन दोनों बातों से इतर अब जनता की बात करें तो उनके लिए राजनेताओं और राजनीतिक पार्टियाँ दिन प्रतिदिन अपने विश्वसनीयता खोती जा रही है । जिस विशवास एवं आशा से जन प्रतिनिधि चुने जाते हैं उस अनुरूप ये अपनी जिम्मेदारी के निर्वहन मैं पूर्णतः खरे नही उतर रहे हैं । एक बार चुने जाने के बाद अपने क्षेत्र मैं दुबारा मुड़कर नही देखना नही चाहते हैं , अपनी आय श्रोतो से अधिक उतरोत्तर वृद्धि करते हैं । गरीबी , भ्रष्टाचार , एवं अशिक्षा , बेरोजगारी जैसे आम जनता से जुड़े मुद्दे पर बात करने की बजाय स्वयं एवं अपने पूर्वज नेताओं की मूर्तियों बनाने मैं , शहरों के नाम बदलवाने मैं , क्षेत्रियाँ वैमनष्य फैलाने मैं और छोटी छोटी बातों मैं धरना , जुलुश और हिंसक प्रदर्शन करने मैं आगे रहते हैं ।
यह उन सुलझा प्रश्न है की विश्वसनीयता किसने खोई - इ वि ऍम मशीन ने , जनता ने या फिर राजनेताओं ने । किंतु इन प्रश्नों का सर्वमान्य हल खोजना देश के लोकतंत्र के हित मैं अति आवश्यक है ।

शुक्रवार, 16 अक्तूबर 2009

दिवाली पर मिलावट खोरी , कालाबाजारी और मंहगाई की धूम !

दिवाली पर मिलावट खोरी , कालाबाजारी और मंहगाई की धूम !
जी हाँ इस दिवाली पर आप कुछ खरीदने जा रहें है । आकर्षक पैकिंग मैं मिलावटी मिठाई और खाद्य सामग्रियां , विशेष छूट के साथ महेंगे कपड़े और इलेक्ट्रॉनिक समान और कालाबाजारी के कारण महेंगे होते अनाज और डाले सभी की धूम मची हुई है । व्यापारी कपडों और भोग विलास की चीज़ों के दाम बढाकर और उसी पर छूट का लालच देकर उपभोक्ताओं को लूटने का प्रयास कर रहें है । मिलावट खोर मिठाई और खाद्य सामग्रियों मैं हानिकारक सामग्री और रसायन मिलकर आम जनता के स्वस्थ्य के साथ खिलवाड़ कर रहें हैं । कालाबाजारी और जमाखोरी कर कृत्रिम अभाव पैदा कर मंहगे दामों मैं अनाज और दैनिक उपयोग की सामग्रियों मनमाने दामों मैं बेच रहे हैं । न तो कीमत मैं नियंत्रण की कोई नीति और न ही मिलावट अवं कालाबाजारी और जमाखोरी को रोकने की कारगर पहल । और न ही खतरनाक मिलावट के काले कारनामे को रोकने हेतु पर्याप्त प्रशसनिक अमला और न ही पर्याप इंतज़ाम हैं ।
ऐसे मैं आम जनता कान्हा जाएँ और क्या करें ? जब भी बड़े त्यौहार और उत्सव का माहोल देश मैं होता है यह सब बड़े पैमाने पर धड़ल्ले से चलता है । और यह सब हर बार की तरह मातृ सनसनी खेज़ ख़बर बनकर रह जाती है । न तो सरका चेतती है और न ही जनता । इस दिवाली मैं भी ऐसे ही हो रहा है ।
अतः इस हेतु एक स्पश्ष्ट और कारगर नीति बनाकर उसके प्रभावी क्रियान्वयन करने की , इस हेतु कुछ सुझाव इस प्रकार हैं -
१। अभी तक ऐसी कोई नीति बनायी गई है की जिससे बाजार मैं सामग्रियों की कीमतें निर्धारित और नियंत्रित किया जा सके । उत्पादक कंपनी और व्यापारी अपनी सहूलियत से कीमतें तय करते रहते हैं । अतः जरूरी है की सरकार को उपभोक्ता सामग्रियां की गुणवत्ता और परिमाण के आधार पर एक मानक तय किया जाकर अधिकतम दाम तय किए जाना चाहिए ।
२। चुकी देश और बाज़ार की आकार के हिसाब से उपभोक्ता सामग्री और खाद्य सामग्रियों की गुणवत्ता जाँच हेतु पर्याप्त मात्रा मैं मैदानी अमला की कमी है । अतः इस हेतु एक शसक्त और प्रभावी विभाग के गठन की आवश्यकता है जो प्रत्येक पंचायत स्तर तक कार्य करे ।
३। हो सके तो खाद्य और औषधि प्रशासन विभाग को पुलिस विभाग अथवा सीधे जिला कलेक्टर के अधीन रखा जाना चाहिए । जिससे शीग्रहता पूर्वक सख्ती से कार्यवाही कर कानूनी कार्याही की जा सके ।
४। सभी जिला स्तर एवं ब्लाक स्तर पर खाद्य सामग्रियों की मिलावट की जांच हेतु परिक्षण लैब की स्थापना की जानी चाहिए । जिससे शीग्रह और समय पर जांच परिणाम मिल सके और दोषियों के ख़िलाफ़ कानूनी कार्यवाही की जा सके ।
५। मिलावटी सामग्रियों की जांच और परिक्षण को आम उपभोक्ता आसानी से कर सके , इस हेतु फर्स्ट एड बॉक्स की अवधारणा अपनाकर फर्स्ट टेस्ट कित का विकास किया जाना चाहिए । जो सभी उपभोक्ता को आसानी से उपलब्ध हो सके , और मिलावट की जांच की जा सके । साथ इस बाबत प्रचार प्रसार कर आम उपभोक्ता को जागरूक करने की आवश्यकता है ।
६। कालाबाजारी और जमाखोरी को रोकने हेतु सभी व्यापारी को लाईसेन्स लिया जाना अनिवार्य किया जाना चाहिए । यह भी अनिवार्य किया जाना चाहिए की व्यापारी अपनी दूकान के सामने सूचना पटल पर प्रतिदिन भण्डारण किए जाने वाले अनाज और सामग्रियों की जानकारी प्रर्दशित करें । उनके द्वारा प्रर्दशित सूचना सही है या ग़लत इसकी आकस्मिक जांच आम उपभोक्ता को शामिल कर की जानी चाहिए ।
७। मिलावट खोरी और कालाबाजारी एवं जमाखोरी पर दोषी पाये जाने पर कड़ी से कड़ी सजा का प्रावधान किया जाना चाहिए एवं ऐसे मामलों के निराकरण हेतु स्पेशल कोर्ट की स्थापना की जाकर दोषियों को कड़ी सजा दिलवाई जानी चाहिए ।
ऐसी मंगल कामना है की दिवाली के पावन पर्व सभी के लिए मंगल may और सुखमय हो । प्रज्जवलित होने वाले दीपो के पवित्र और अलोकिक प्रकाश की रौशनी से जीवन खुशियों मैं अन्धकार फैलाने वाली मिलावात्खोरी , कालाबाजारी , जमाखोरी और मंहगाई जैसी विकृतियों का नाश होगा और देश मैं शान्ति और सुख माय वातावरण का निर्माण होगा । ऐसी मंगल कामना के साथ सभी को दीपावली पर्व की कोटि कोटि बधाईयाँ और सुभ कामनाएं ।

नील लगे न पिचकरी, #रंग चोखा आये ,

  नील लगे न #पिचकरी, #रंग चोखा आये , कीचड का गड्डा देखकर , उसमें दियो डुबाये .   ऊंट पर टांग धरन की , फितरत में श्रीमान , मुंह के बल...