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रविवार, 1 जून 2008

अनियंत्रित होती मंहगाई !

मंहगाई है की कम होने का नाम ही नही ले रही है । सरकार द्वारा अपने स्तर से किए गया सारे प्रयास निरर्थक साबित हुए है । यह विडंबना ही है की देश के वर्तमान सरकार मैं दो दो विदेश से शिक्षा प्राप्त अर्थशास्त्री बैठे है फिर भी मंहगाई को नियंत्रित नही किया जा सका है । हर बार यही कहा जाता रहा की सरकार द्वारा उठाये गया क़दमों के फलस्वरूप मंहगाई कुछ दिनों मैं निश्चित रूप से कम हो जायेगी । वैसे भी मंहगाई हेतु किए गए प्रयास सिर्फ़ उपरी स्तर के लगते है । जमीने स्तर पर ये प्रयास कम ही किए गए जान पड़ते है । अर्थशास्त्र से जुड़े ऐसे कदम उठाने का जिक्र किया , जिसका मतलब आम जनता तो जानती नही है । आम जनता के हिसाब से ऐसे कदम नही उठाये गए हैं जिससे मंहगाई कम होने मैं उल्लेखनीय सफलता मिली हो । और तो और देश की मंहगाई को बढ़ते हुए तेल के दाम और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर बढ़ती हुई मंहगाई से जोडा गया । जैसे देश मैं जमाखोरी और काला बाजारी रोकने के लिए कोई ठोस और कड़े कदम उठाये गए हो , खाद्य वितरण प्रणाली को चुस्त दिरुस्त किया गया हो , ऐसा तो अभी तक नजर नही आया है । यदि केन्द्र और राज्य स्तर से ही इस तरह के कदम कड़ाई से उठाये जाते तो शायद मंहगाई को बहुत हद काबू मैं किया जा सकता है । साथ ही सरकार और सरकार के घटक दल मैं ही मंहगाई को लेकर घमशान मचा हुआ है , एक दूसरे को दोष दिया जा रहा है , किंतु मिल बैठकर इसका हल निकलने का प्रयास बमुश्किल ही किया गया है । वाही विरोधी और सत्ताहीन दल बस विरोध के उद्देश्य से विरोध कर रहे हैं । वैसे कर्नाटक के चुनाव मैं मंहगाई से त्रस्त जनता ने अपना संकेत दे ही दिया है । किया यह जा सकता की मंहगाई की समस्या के निराकरण हेतु सर्वदलीय बैठक बुलाई जा सकते थी । अब भुगत तो आम जनता रही है , इन नेताओं और सत्तासीनो का क्या उन्हें तो सारी सुबिधा मिल रही है वह भी जनता के खून पसीनो की कमाई से । इस मंहगाई के जमाने मैं भी अपनी सुरक्षा और सुख सुबिधाओं के पीछे लाखो करोड रूपये खर्च हो रहे है , किसी नेता और सरकार के नुमईन्दे ने अपनी सुख सुबिधाओं मैं कटौती की बात भी नही की ।
अतः यदि जमीने स्तर पर इस तरह प्रयास किए जाते तो संभवतः अनियंत्रित होती मंहगाई को नियंत्रित किया जा सकता था ।

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